Home > Work > गोदान [Godaan]
41 " जब डूबना ही है, तो क्या तालाब और क्या गंगा। "
― Munshi Premchand , गोदान [Godaan]
42 " आशा में कितनी सुधा है। "
43 " सुख में आदमी का धरम कुछ और होता है, दुख में कुछ और। सुख में आदमी दान देता है, मगर दु:ख में भीख तक माँगता है। उस समय आदमी का यही धरम हो जाता है। "
44 " जन-शिक्षा का उद्देश्य जितने कम ख़र्च में पत्रों से पूरा हो सकता है, और किसी तरह नहीं हो सकता। "
45 " एक इनके ठीक हो जाने से तो देश से अन्याय मिटा जाता नहीं, फिर क्यों न इस दान को स्वीकार कर लूँ। मैं अपने आदर्श से गिर गया हूँ ज़रूर; लेकिन इतने पर भी राय साहब ने दग़ा की, तो मैं भी शठता पर उतर आऊँगा। "
46 " जो अपनी जान खपाते हैं, उनका हक़ उन लोगों से ज़्यादा है, जो केवल रुपया लगाते हैं। "
47 " उनकी आँखों में वह शून्यता थी, जो विक्षिप्तता का लक्षण है। "
48 " आप नहीं जानते मिस्टर मेहता, मैंने अपने सिद्धांतों की कितनी हत्या की है। कितनी रिश्वतें दी "
49 " दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। "
50 " शिष्टता उसके लिए दुनिया को ठगने का एक साधन थी, मन का संस्कार नहीं। "
51 " स्नेह-कोमल स्वर में बोली -- तो तुम इतना दिल छोटा क्यों करते हो? धन के लिए, जो सारे पाप की जड़ है? उस धन से हमें क्या सुख था? सबेरे से आधी रात तक एक-न-एक झंझट -- आत्मा का सर्वनाश! लड़के तुमसे बात करने को तरस जाते थे, तुम्हें संबंधियों को पत्र लिखने तक की फ़ुरसत न मिलती थी। क्या बड़ी इज़्ज़त थी? हाँ, थी; क्योंकि दुनिया आज तक धन की पूजा करती चली आयी है। उसे तुमसे कोई प्रयोजन नहीं। जब तक तुम्हारे पास लक्ष्मी है, तुम्हारे सामने पूँछ हिलायेगी। कल उतनी ही भक्ति से दूसरों के द्वार पर सिजदे करेगी। तुम्हारी तरफ़ ताकेगी भी नहीं। "
52 " लेकिन आप यह भी जानते हैं, कवि को संसार में कभी सुख नहीं मिलता? "
53 " धनी कौन होता है, इसका कोई विचार नहीं करता। वही जो अपने कौशल से दूसरों को बेवक़ूफ़ बना सकता है "
54 " हम लोग समझते हैं, बड़े आदमी बहुत सुखी होंगे, लेकिन सच पूछो तो वह हमसे भी ज्यादा दुःखी हैं। हमें अपने पेट ही की चिंता है, उन्हें हजारों चिंताएँ घेरे रहती हैं। "
55 " सारी आत्मिक और बौद्धिक और शारीरिक शक्तियों के सामंजस्य का नाम धन है। "
56 " बुझी हुई आशाएँ और मिटी हुई स्मृतियाँ और टूटे हुए हृदय के आँसू हैं। जिस दिन इन विभूतियों में उसका प्रेम न रहेगा, उस दिन वह कवि न रहेगा। "
57 " कविताएँ पढ़ी हैं और उनमें जितनी पुलक, जितना कंपन, जितनी मधुर व्यथा, जितना रुलानेवाला उन्माद "
58 " जो स्त्री अपने पुरुष को प्रसन्न न रख सके, अपने को उसके मन की न बना सके, वह भी कोई स्त्री है? "
59 " नेकी अगर करनेवालों के दिल में रहे, तो नेकी है, बाहर निकल आये तो बदी है। "
60 " मैं अपने को भी अपना नहीं बना सकती, वह दूसरों को भी अपना बना लेती है। "